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रंजिशें, तल्खियां, गिला लेकर / ध्रुव गुप्त

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रंजिशें, तल्खियां, गिला लेकर
मत चलो इतना फ़ासला लेकर

मेरा चेहरा ही नामुकम्मल है
आप क्यों आए आईना लेकर

अपने जैसा न बनाओ हमको
प्यार होता है दिल जुदा लेकर

दूरियां इसलिए खली भी नहीं
घर से निकले थे रास्ता लेकर

कैसा बच्चों सा दिल हमारा था
जी न पाए थे बचपना लेकर

आज तक लौट कर नहीं आया
मैं जो निकला तेरा पता लेकर

किसके सीने में हम धड़क जाएं
हाथ में टूटी पसलियां लेकर

ख्व़ाब मरते हैं, लोग जीते हैं
फिर कोई ख्वाब दूसरा लेकर

जख्म ताज़ा है अभी चुप रहिए
फिर सुनेंगे कभी मज़ा लेकर