भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
लापरवाही / मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:03, 10 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा नाथ सिंह 'रानीपुरी' |अनुवाद...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
केकरऽ कहाँ यहाँ के सूनै
ई अनसैलऽ बात
देखऽ सच कानै-कपसै छै
झूठें मारै लात।
तेबर चढ़ै छै सुनत्है फुसफुस
कहतैं करै आघात
भला कहऽ कहिया मौजऽ के
के बाँटतै जजवात।
गुमसुम कतेॅ ई गुमसैलऽ
दिन रहतै की रात
गरजी-भूकी धुंध मिटावऽ
ई बदली बरसात।
अड्डा-गड्डा टुटै क्यारी
के बंधन सब घात
बिना उछलनें की मन ‘मथुरा’
मिटलै कौरब तात?