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दोहे / कँटरेंगनी के फूल / विजेता मुद्‍गलपुरी

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खड़ँगल-खड़ँगल खोंढ़ सब खूब तपल बैसाख
एगो लुत्ती से भेलै, सौंसे बस्ती राख

उन्ने छै तरमिस लगल इन्ने लघल झकास
टप टप घर चूते रहल ओय पर ठंड बतास

बर उतपाती सन लगै आदमखोर दहेज
रच्चै कोहवर घोर में कँटरेंगनी के सेज

राजतंत्र के लीक पर प्रजातंत्र के पाँव
बड़ा दुखद लागे लगल राजनीति के छाँव

सूरज ढलते सब तरफ पसरे लगलै रात
फेरो उल्लू राज के भें रहलै सुरुआत

सुरू तमाशा छै हियाँ देखो नंगा नाच
ऐसन मिलतो फेर नै बिन पैसा के पाँच

नशा जात के जब चढ़ल तब करलक उद्घोष
नाचै वाला ठीक छै ऐंगने के छै दोष

आँख भेंटलै माघ में रहै कुहासावाद
एकरे से नापे लगल सूरज के औकाद

जुत्ता ढूऐ के चलन ढूऐ चमचागीर
की कहभो एकरा कहो करतब की तकदीर

देलक शाही सन सनक लोकतंत्र के मंत्र
राजनीति के अर्थ अब सब जानै षडयंत्र