भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कौन अभी पुचकारे अम्मा / दीपक शर्मा 'दीप'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:01, 12 जुलाई 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप' |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कौन अभी पुचकारे अम्मा
तुम सा कौन दुला रे अम्मा

दुखियारों का काँसा आके
दर पर किसे पुकारे,अम्मा!

 सब अम्मा पर लदते जायें
सब का बोझ उता रे अम्मा

बच्चों की माँगों पे अक्सर
रखती चाँद-सितारे अम्मा

कौन मिला होगा परियों से
हाँ रे हाँ रे हाँ रे अम्मा

 रीढ़ रही थीं अम्मा घर की
कह-कर रोये सारे, अम्मा!

 आँगन,चूल्हा-चौका,बर्तन
डिबरी-लुगरी,का रे!,अम्मा

तू थी तबतक प्यारे थे,फिर
 बहुत गये दुतकारे अम्मा !

हमको तू ही समझा दे अब
हम समझा-कर हा रे अम्मा