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जब धूप खिले / स्वाति मेलकानी

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     ठंडे पैरों से चलकर
     मैं आई तुम तक
     सोचा था तुम जलते होगे
     पर
     तुम मुझको पाकर
     जैसे बर्फ हो गये
     मैं भी जमने लगी तुम्हारे साथ
     और अब
     केवल आँखे शेष बची हैं।
     ढूँढ रही हूँ आसमान में
     कोई सूरज वाला दिन
     जब धूप खिले
     हम दोनों पिघलें
     और नदी जीवन की
     बहने लगे टूटते हिमखंडों से।