भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नींद से सबको जगाता था यहाँ / भवेश दिलशाद
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:21, 2 सितम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भवेश दिलशाद |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
नींद से सबको जगाता था यहाँ
इक फ़क़ीरा गीत गाता था यहाँ
था तो नाबीना मगर वो अस्ल में
ज़िन्दगी कितनी दिखाता था यहाँ
ताकती हैं खिड़कियाँ उम्मीद से
पहले अक्सर कोई आता था यहाँ
कह रहा है गाँव बूढ़ा दूर जा
जब जवाँ था तो बुलाता था यहाँ
बेहया कमबख़्त पागल बदतमीज़
मैं भी कितने नाम पाता था यहाँ