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कभी तो सामने आ बेलिबास होकर भी / भवेश दिलशाद
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कभी तो सामने आ बेलिबास होकर भी
अभी तो दूर बहुत है तू पास होकर भी
तेरे गले लगूँ कब तक यूँ एहतियातन मैं
लिपट जा मुझसे कभी बदहवास होकर भी
तू एक प्यास है दरिया के भेस में जानां
मगर मैं एक समंदर हूँ प्यास होकर भी
तमाम अहले-नज़र सिर्फ़ ढूँढते ही रहे
मुझे दिखायी दिया सूरदास होकर भी
मुझे ही छूके उठायी थी आग ने ये क़सम
कि नाउमीद न होगी उदास होकर भी