भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तसव्वुर / तुम्हारे लिए, बस / मधुप मोहता

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:14, 10 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मधुप मोहता |अनुवादक= |संग्रह=तुम्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

गर्म साँसें, नर्म से अहसास, ख़ुशबू
बिजलियाँ, बदली, हवा के सर्द झोंके
कुछ तुम, कुछ तुम्हारी याद की पुरवाइयाँ,
थोड़ा मैं ठगा-सा, और ये भीगा हुआ मौसम
फिर महकी हुई सी शाम, फिर चश्मे-नम
छलकती मस, पिघलती बर्फ, ठहरे ग़म,
ठिठुरती चाँदनी, बहका मैं, सिहरती तुम
तुम ज़रा गुमसुम तुम्हारे जिस्म पर शबनम
तसव्वुर है तुम्हारा तुम नहीं मेरे सनम।