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कुछ तो कर लो / यतींद्रनाथ राही

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बहुत सो लिये
जागो भाई
शाम हो चली
कुछ तो कर लो!

रहे देखते खड़े तमाशा
जादूगर की हाथ-सफाई
बाँट गया
कुछ शब्द-बताशे
बातों की रस भरी मलाई
राम नाम जपने का मन्तर
कुछ गन्डे-ताबीज दे गया
भ्रम का शंख हाथ में धरकर
जाने क्या अनमोल ले गया
हाथ मलो मत
अब यों बैठे
कुछ संकल्प सबल तो धरलो!

धरते रहे
धरम के धक्के
लम्पट-लुच्चे-चोर-उचक्के
पावनता के उजले चोले
गलित कोढ़ के बीच फफोले
अहंकार की विश बेलों में
दुराचार-अन्याय-नफरतें
मठाधीश, तपसी, सन्यासी
कैसी कैसी करें हरकतें
देव-धाम उजराओ पहले
फिर पूजा के थाल सँवर लो!

आँगन में बाज़ार
नैट पर प्यार
बिकाऊ नाते-रिश्ते
न्याय-नीति-ईमान सभी तो
बिक जाते हैं कितने सस्ते
धूल उड़ रही संस्कारों की
मानवता पियराई-सूखी
कहीं स्वर्ण तो कहीं रोटियाँ
पीढ़ी आज, समूची भूखी
खुली हथेली,
फैली अँजुरी में
कुछ भूख-प्यास
तो भर लो।