भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

जी करता है / प्रीति समकित सुराना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:46, 29 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रीति समकित सुराना |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जी करता अब जी भर जी लूँ,
साथ मिला तेरा।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे,
कहता मन मेरा॥

अंतस पर घनघोर घटा के
मौसम आए थे,
उमड़ घुमड़ दहशत के बादल
नभ पर छाए थे,
बिखरे बिखरे मन को मेरे
गम ने था घेरा।
जी करता अब जी भर जी लूँ,
साथ मिला तेरा
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे,
कहता मन मेरा॥

आज सजाये सपने फिर से
सोच नई पाई,
छोड़ निराशा की बातों को
नव आशा लाई,
मिटे अंधेरे गहन व्याप्त हो
किरणों का घेरा...
जी करता अब जी भर जी लूँ
साथ मिला तेरा।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे
कहता मन मेरा॥

पथ में कांटे बहुत बिछे थे
डर के थे साये,
महका मेरे मन का उपवन
फूल तुम्ही लाये,
फिर से मेरे मन आँगन में
खुशियों का डेरा,
जी करता अब जी भर जी लूँ
साथ मिला तेरा।
हँस कर सह लूँ सुख दुख सारे
कहता मन मेरा॥