भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

तुम आई हो / कुमार रवींद्र

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:49, 30 अक्टूबर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम आई हो
हमें खबर है मिली हवाओं से
 
धूप-नहाये चन्दन-वन की
ख़ुशबू व्यापी घर में
बोली हवा -
हुआ है जादू
फूल खिले पतझर में
 
देह सिहाई
छुआ हमें ऋतु ने इच्छाओं से
 
दुपहर भर सूरज ने की
साँसों में ताकाझाँकी
दिखीं आयने में भी छवियाँ
बनी-ठनी की बाँकी
 
साँझ हुए
गूँजा घर मीठी पुराकथाओं से
 
दिखी जुन्हाई
रात हवा से
हँस-हँसकर बतियाती
हुई और उजली
चौरे के दीये की बाती
 
सभी सुखी हों
घर-बाहर / मन भरा दुआओं से