भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दिलों की उलझनों से फ़ैसलों तक / द्विजेन्द्र 'द्विज'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:42, 22 जून 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=द्विजेन्द्र 'द्विज' }} Category:ग़ज़ल दिलों की उलझनों से फ़...)
दिलों की उलझनों से फ़ैसलों तक
सफ़र कितना कड़ा है मंज़िलों तक
यही पहुंचाएगा भी मंज़िलों तक
सफ़र पहुँचा हमारा हौसलों तक
ये अम्नो—चैन की डफली ही उनकी
हमें लाती रही कोलाहलों तक
दरख़्तों ने ही पी ली धूप सारी
नहीं आई ज़मीं पर कोंपलों तक
हम उनकी फ़िक़्र में शामिल नहीं हैं
वो हैं महदूद ज़ाती मसअलों तक
ज़माने के चलन में शाइरी भी
सिमट कर रह गई अब चुटकलों तक
यहाँ जब और भी ख़तरे बहुत थे
‘द्विज’! आता कौन फिर इन साहिलों तक