भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

भजन-कीर्तन: कृष्ण / 16 / भिखारी ठाकुर

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:55, 3 नवम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भिखारी ठाकुर |अनुवादक= |संग्रह=भज...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

प्रसंग:

ब्रजवासियों को श्रीकृष्ण के बिना उदासी लगती है। उन्हें आशंका है कि कुबरी ने उन्हें फँसा कर रोक रखा है।

मोहन बिनु मनवां तरसत मोर दिन-रात।
दादुर-मोर शोर बादल के तनीभर नइखे सोहात। भादो-सावन सेज भेआवन गिरत जब बरसात॥
अब ना प्राण रही प्रीतम बिनु कुवरी कुरोग लखात। ‘भिखारी’ सारे ब्रजवासी सिर धुनि पछतान॥