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विचित्र युद्ध / इंदुशेखर तत्पुरुष

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कैसा यह विचित्र युद्ध
कैसे विचित्र अस्त्र-शस्त्र इसके
एक फूल जैसे हल्के
शब्द की नोंक से
चिर जाता कभी
आंसुओं का बादल
कभी दो बूंद
आंसुओं में डूब जाता
समूचा शस्त्रागार।