भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

रविवार और बच्चे : दो / इंदुशेखर तत्पुरुष

Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:09, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

बच्चे उदास हैं
पापा को जाना है बाहर
अबके रविवार
सोचते हुए बच्चे
भूल जाते हैं थोड़ी देर में
दिनभर इधर-उधर
टी.वी., होमवर्क या खेलते-कूदते
आपस में झगड़ते निकल जाता है सारा दिन
रात को जागते हैं देर तक करते इन्तजार
पूछते मम्मी से
जयपुर की आखिरी बस का टाईम
सोते हुए मुस्कुराते हैं
बहुत महीन
सुबह उठते ही सबसे पहले
कौन खुखेरेगा-पापा की अटैची।