भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रविवार और कुछ लोग : चार / इंदुशेखर तत्पुरुष
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:14, 26 दिसम्बर 2017 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=इंदुशेखर तत्पुरुष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मैं सोचता हूं
उन लोगों के बारे में
जिनके पूरे सप्ताह
नहीं आता कभी कोई रविवार
क्योंकि रविवार का आना उनके घर
होता है एक अपशकुन की तरह
जैसे बैठ जाए चूल्हा
मिट्टी का
मूसलाधार में।
सोचकर सहम जाती है घरवाली
और बच्चे उदास।
सर्दी-गर्मी-आंधी-बरसात
हारी-बीमारी
ये कर्मयोगी मुंह अंधेरे
निकल पड़ते काम पर।