भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
विरसे में निकलेगा प्रेम / सरोज सिंह
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:46, 23 जनवरी 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सरोज सिंह |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अजनबी ज़ुबानो में खुदे
सिक्के और मोहरें
आहन, मिटटी के बर्तन टूटे-फूटे
देवी-देवताओं की खंडित प्रतिमाएं
मिटटी में पोशीदा ज़ेवर
कुंद हथियार
पक्के स्नानागार
क्या बस यही विरसा है हमारा?
सोचती हूँ
जाने से पहले
मिटटी में गाड़ जाऊँ.
सहेजा...संजोया
"प्रेम "