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मुझे तापमान मापना नहीं आता / वंदना गुप्ता

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मुझे तापमान मापना नहीं आता
मत पूछना कौन सा?
यंत्रों से मापना तो
एक बच्चा भी जानता है
और मुझे मापना है
दुनिया का तापमान
उसके अंतस्थ का तापमान
जिसमें हर सैकेण्ड में
लाखों कीडे कुलबुला रहे होते हैं
बेबसी के, बेज़ारी के
कभी समय की
तो कभी सत्ता की
तो कभी समाज की
तो कभी हालात की
और निरीह पशु-सा उसका अंतस्थ
गर्म तवे पर लोटता, सिंकता, भुनता
अपने वजूद से
अपने होने से
अपनी बेबसियों से
कितना बेज़ार होता है
कि खुद को ही नहीं स्वीकार पाता
फिर कैसे मापा जा सकता है तापमान
जहाँ मापने के लिये यंत्र की नहीं
सूक्ष्म अवलोकन की ज़रूरत हो

क्यों है ये बेगानापन ज़िन्दगी से
क्यों है ये अजनबियत खुद से
कारण तो बहुत मिलेंगे खोजेंगे तो
मगर उनके अर्थों में उतरने के लिये
गहरी डुबकी ज़रूरी है
ये मानव का
अवांछित तत्वों द्वारा
कभी राजनीतिकरण करना
तो कभी धार्मिक उन्माद से भयग्रस्त करना
और अपना परचम लहराना ही
शायद वह चक्रव्यूह है
जिसका भेदन वह कर नहीं पाता
फिर चाहे कोई देश हो
कोई परिस्थिति हो
कोई काल हो

बीज बोये हैं अपने-अपने क्षेत्र के
सिद्धहस्त कठमुल्लाओं ने
और बाँट दिया इंसानियत को
कर दिये टुकडे दिलों के
दिलों में उपजते प्रेम के
संसार में फ़ैले अमन के
नहीं चाहतीं कुछ उन्मादी
शरारती प्रवृत्तियाँ
इंसानियत और प्रेम के धर्म का प्रचार
फिर कैसे सिकेगी उनकी रोटी
कैसे होगा उनका प्रभुत्व कायम
चाहे इसके लिये
ईसा हो या सुकरात या ओशो
सूली पर चढाना
ज़हर पिलाना
जन्मसिद्ध अधिकार है उनका
और उनके आधीन
उनको ताकती इंसानियत
औंधे मूँह पडी दो गज़ ज़मीन के नीचे
समाने को विवश होती है
फिर कैसे ना बेज़ारी का गीत जन्म लेगा
फिर कैसे ना बेबसी के काँटे हर पल चुभेंगे
और वह आक्रोशित, उपेक्षित, अर्धविक्षिप्त सा
जो कोई भी हो सकता है
इस दुनिया के किसी भी कोने से
क्यों ना लावा लिये हर पल खौलता मिलेगा
कैसे मापा जा सकता है उसका तापमान?

क्या बेबसी, लाचारियों को भी मापने की कोई प्रणाली विकसित हुयी है
किसी भी प्रयोगशाला में
या बना है कोई यंत्र जो माप सके और बता सके
वो जो ज़िन्दा दिखता है, साँस लेता, चलता फ़िरता
क्या सचमुच वह ज़िन्दा है?

जो हर पल मरता है इंसानियत की मौत पर
जो हर पल मरता है अमन की मौत पर
जो हर पल मरता है प्रेम सौहार्द की मौत पर
कहो मापा जा सकता है उसके अंतस्थ का तापमान?