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बच्चे तो बस हो जाते हैं / वंदना गुप्ता

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वो कहते हैं अब के बच्चों में
संवेदना नहीं पनपती
प्रेम प्यार के बीज ना पल्लवित होते हैं
बेहद प्रैक्टिकल होते जा रहे हैं
ना मान आदर सम्मान करते हैं
अब तो आँख की शर्म भी भूलते जा रहे हैं
आपस में यूँ लड़ते झगड़ते हैं
मानो खून के प्यासे हों
ना देश से प्यार ना समाज से और ना अपनों से
सिर्फ अपने लिए जिए जा रहे हैं
मान मर्यादाओं को भूले जा रहे हैं
मगर इसके कारण ना खोजे जा रहे हैं
क्यों आज की पीढ़ी में अभाव पाया जाता है
क्यों नहीं उनके चेहरों पर
मुस्कान का भाव पाया जाता है
क्यों नहीं मुख से आत्मीयता टपकती है
कारण खोजने होंगे
क्योंकि
ये सब पूर्व पीढ़ियों की ही तो देन है
गहन अध्ययन करना होगा
आत्मशोधन करना होगा

प्रेम का न कहीं कोई भाव होता है
सिर्फ स्त्री और पुरुष
दो प्राणियों से निर्मित
जग संचालित होता है
गर गौर करोगे तो पाओगे
प्रकृति के रहस्य भी जान जाओगे
प्रकृति का फूल खिला होता है
एक रूप रंग गुण से भरा होता है
क्योंकि वहाँ मोहब्बत का संचार होता है
जो दिया मोहब्बत से दिया
जो लिया मोहब्बत से लिया
तो क्यों न वहाँ मोहब्बत का संचार हुआ
उस रूप पर ज्ञानी, अज्ञान, कुटिल, खल, कामी सभी मोहित होते हैं
पर फिर भी न हम कोई सीख लेते हैं
सिर्फ आत्म संतुष्टि के लिए ही जीवन जीते हैं

स्त्री पुरुष दो भिन्न प्रकृति
तत्वतः जब एक होती हैं
तो सिर्फ़ रतिक्रीड़ा का ही आनंद लेती हैं
वहाँ ना ये भाव होता है
ना इक दूजे की सहमति होती है
फिर मोहब्बत तो उन क्षणों में
बेमानी लफ्ज़ बन रह जाती है
क्योंकि सिर्फ़ शरीरों का खिलवाड़ होता है
वहाँ तो आत्म संतुष्टि का ही भाव उच्च आकार लेता है
जब स्वार्थ सिद्धि ही कारक बनेगी
तो कैसे न गाज गिरेगी
सिर्फ आत्म संतुष्टि के लिए जब सम्भोग होगा
तो ऐसे ही बच्चों का जन्म होगा
वहाँ बच्चे तो बस हो जाते हैं

स्त्री से कब पूछा जाता है
वहाँ तो बीज बस रोंपा जाता है
उसकी चाहत पर अंकुश रख
अपनी चाहतों को थोपा जाता है
ऐसे में जैसा बीज पड़ेगा
फसल तो वैसी ही उगेगी
प्यार मोहब्बत संवेदन विहीन पीढ़ी ही जन्म लेगी

क्षणिक आवेगों में
क्षणिक सुखों के वेगों में
बच्चे तो बस हो जाते हैं
और अपने किये की तोहमत भी
हम उन्हीं पर लगाते हैं

क्योंकि
उपयुक्त वातावरण के बिना तो
ना कहीं कोई फूल खिलता है
उसे भी हवा, पानी और ताप
के साथ प्रकृति का
निस्वार्थ स्नेह मिलता है
तभी वह अपनी आभा से
नयनाभिराम दृश्य उपलब्ध कराता है
फिर कैसे वैसा ही
आत्मीय सम्बन्ध बनाये बिना
मानवीय संवेदनाओं का जन्म हो सकता है
जब सुनियोजित तरीके से विचार जायेगा
और गर्भधारण से पहले
इक दूजे की सहमति, प्यार और समर्पण
को आकार मिलेगा
उस दिन मोहब्बत
प्रकृति और पुरुष-सी जीवन में उतरेगी
इक दूजे को मान देगी
नयी पीढ़ी के जन्म में
मोहब्बत के अंकुरण भरेगी
तभी संवेदनाएँ जन्म लेगीं
तभी मोहब्बत का पौधा लहलहाएगा
और हर चेहरे पर
खिला कँवल मुस्कराएगा
फिर न कभी ये कहा जायेगा
बच्चे तो बस हो जाते हैं
बच्चे तो बस हो जाते हैं...