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मत कहो यह जिंदगी संत्रास है / रंजना वर्मा
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मत कहो यह जिंदगी संत्रास है
पतझड़ों के बाद फिर मधुमास है
कल गिरेगी सूख कर हर पंखुरी
आज कलियोंके अधर पर हास है
कब मिला पूजा घरों में है तुम्हे
ईश का तो हृदय में आवास है
साधु वन वन हैं भटकते ढूँढते
प्रभु मिलेंगे बस यही विश्वास है
सुख नहीं मिलता जमाने मे कभी
जो मिला वह सिर्फ सुख आभास है
फूट कर रोया गगन वर्षा हुई
बुझ रही देखो धरा की प्यास है
है धरा अम्बर क्षितिज पर मिल रहे
कल्पना मन की महज़ उल्लास है