भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
खो रहा आज ईमान क्यों आदमी / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 17:25, 3 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रंजना वर्मा |अनुवादक= |संग्रह=गुं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
खो रहा आज ईमान क्यों आदमी
भूलता अपनी पहचान क्यों आदमी
ओढ़ चिंता तनावों की चादर पड़ा
भूल बैठा है मुस्कान क्यों आदमी
वो अहिंसा के दावे सभी क्या हुए
आज लेने लगा जान क्यों आदमी
सत्य की रोशनी को बुझाने चला
है भुलाता दिशा भान क्यों आदमी
पाठ इंसानियत का नहीं याद पर
कर रहा व्यर्थ गुणगान क्यों आदमी
स्वार्थ की सीख दे गुरु कहाता वही
ले रहा इस तरह ज्ञान कयों आदमी
पूर्व पुरुषों ने वर्षों सहेजा जिसे
है मिटाता वही मान क्यों आदमी
सैनिकों का न स्वागत करो संग से
है गंवाता यों' सम्मान क्यों आदमी
देश को बाँटने की करे कोशिशें
मान से है यों अनजान क्यों आदमी