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याद से आपकी जब लगन हो गया / रंजना वर्मा

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याद से आपकी जब लगन हो गया
ग़म जुदाई का साथी सहन हो गया

चाँदनी ओढ़ कर जब अँधेरा चला
जुगनुओं के हृदय की जलन हो गया

मुग्ध चंचल भ्रमर गुनगुनाने लगे
जब दुखद यामिनी का गमन हो गया

जल रही थी शमा रौशनी बाँटती
लो तिमिर के कलुष का धन हो गया

भोर पटुका ओढ़ाने चली रात को
जान पायी न कैसे कफ़न हो गया

लाज से मुख छिपाने लगीं नारियाँ
घुँघटों का तभी से चलन हो गया

नभ लगा ढूंढ़ने भूमि की खामियाँ
बस अजानें धरा से मिलन हो गया