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हम ने जब भी अँधेरों से रिश्ता किया / रंजना वर्मा

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हम ने जब भी अंधेरों से रिश्ता किया
जुगनुओं को सितारों से समझा किया


दो घड़ी चैन की ग़र कहीं मिल गयी
बस वहीं बैठ कर थोड़ा सुस्ता लिया


खुद को जिंदा रखा हम ने हर हाल में
रब ने जो भी दिया सर झुकाया लिया


हर वरक पर रहा नाम उस का लिखा
जब भी देखा उसे हम ने सिजदा किया


इतना आसां नहीं है उसे जानना
वो तो खुद से हमेशा है भागा किया


तुझ से कोई कसम ना निभायी गयी
था जमाने से क्यों तू ने वादा किया


डोलियों की हैं लगने लगीं बोलियाँ
इसलिये मौत से उस ने रिश्ता किया