भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना-अपना रास्ता / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:07, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
वे निर्विघ्न रूप से
पहाड़ जैसे भारी कुकर्म करते गये, करते गये
और समाज में बड़ा बने रहे
उनके भीतर से या तो आवाज़ उठी नहीं
या कि उन्होंने उसे सुना नहीं
छोटी सी ग़लती उसने की-पहली बार
और पकड़ लिया गया
मानो किसी अदृश्य शक्ति ने सावधान किया-
”यह रास्ता तुम्हारा नहीं है वत्स
तुम तो सच के लिए बने हो“
और इस छोटी सी भूल के लिए
वर्षों उसकी आत्मा उसे धिक्कारती रही।
-31.3.2015