भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
अपना-अपना मंदिर / रामदरश मिश्र
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:08, 12 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामदरश मिश्र |अनुवादक= |संग्रह=मै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
धार्मिक त्योहार का दिन था
मंदिर रोशनी में नहा रहा था
लोग चले जा रहे थे मंदिर की ओर-
दीप-दान के लिए
उसे अपने दरवाजे़ पर चुपचाप खड़ा देख
पड़ोसी सेठ ने पूछा-
मंदिर नहीं चलना है?
आऊँगा-आऊँगा आप चलें
सेठ चले गये
वह कुछ देर बाद निकला
और अँधेरे में डूबे एक घर की देहरी पर
चुपचाप एक दीप रख आया।
-20.4.2015