भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

निष्ठा / सुनीता जैन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:22, 17 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

तुम धागा थे
सदा रहे,
मैं हाथों से
फिसल-फिसलकर
बचती रही
बँधने से

मेरे उस न बँधने में,
मेरे फिर-फिर गिरने में,
आश्वासन क्या
तुम्हीं नहीं थे?

लौटी जब-जब
हार-हार मैं,
हाथ पकड़ने
तुम्हीं मिले

धागे की ऐसी निष्ठा!
मैं मोती, पानी-पानी,
इसी तरह से लँगड़ाती क्या,
हर युग में
प्रेम कहानी?