भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
यह भी माया है / सुनीता जैन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:28, 17 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता जैन |अनुवादक= |संग्रह=यह कव...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
तुम आए
मेरे प्रभु की माया थी
तुम नहीं रुके
यह भी माया है
किन्तु अणु-अणु जो
भीतर तक रंग आता है
वह कभी नहीं
बिसराता है
इसीलिए चौरासी-
लाख जन्म तक
शायद यह तय होना है
किसको कब क्या खोना,
क्या पाना है!