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बुझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी / छत्तीसगढ़ी

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बुझो बूझो गोरखनाथ अमरित बानी

बरसे कमरा भींजे ल पानी जी

कौआ के डेरा मा पीपर के बासा

मुसवा के बिला म बिलई होय नासाजी

बूझो बूझो.....

तरी रे घैला उप्पर पनिहारी

लइका के कोरा म खेले महतारी जी

बुझो-बुझो

भागे ले कुकुर भूँके ले चोर

मरगे मनखे झींकत हे डोर जी

बुझो-बुझो


बांधे ले घोड़ा, भागे ले खूंटा

चढ़ के नगाड़ा बजावत हे ऊंटा जी

बुझो-बुझो

पहली हे पूछें पीछे भय माई

चेला के गुरू लागत हे पाईं जी

बुझो-बुझो