भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नगरी अन्हेर / मथुरा प्रसाद 'नवीन'
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:10, 24 अप्रैल 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मथुरा प्रसाद 'नवीन' |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बबुआ,
एखने हिंया समय हइ
जनता के लोप
और नेता के उदय हइ
सब कहऽ हे कि
कहर हो जैते
गाँव-गाँव में
बिजली अउ नहर हो जैतै
कहर हो जैतै
सहर सरग
गाँव सहर हो जैतै
चाहे रंगीन रहै इया, सादा
वादा पर वादा
फेर
चौपट राजा नगरी अन्हेर