हम बिखर गए पारे-से
किसी तश्तरी में
आखिर कर ही लिया आकाश में सूराख
हमने जाने-अनजाने
अब उस झोपड़ी का क्या करें
जिसके सुख में छिपते थे हम किसी अन्तिम
बारिश के भय से
हम बिखर गए पारे-से
किसी तश्तरी में
आखिर कर ही लिया आकाश में सूराख
हमने जाने-अनजाने
अब उस झोपड़ी का क्या करें
जिसके सुख में छिपते थे हम किसी अन्तिम
बारिश के भय से