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पहिलोॅ-सर्ग / सिद्धो-कान्हू / प्रदीप प्रभात

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सिद्धो-कान्हू, चॉद, भायरो,
नाम उजागर होलो छै।
जन्म भूमि सिद्धो-कान्हू के,
भोगना डीह कहलावै छै।

पहिलोॅ-सर्ग

सिद्धो-कान्हू के परिचय
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हरेक गलियो अमन गुलशन छै,
रणभूमि रण सेॅ मैदान छैकै।

ई धरती कोय्योॅ आरू न´,
भोगनाडीह रोॅ मैदान छेकै।

जोंॅ इतिहास लिखैं लेॅ चाहै छोॅ,
आजादी रोॅ मजमून सेॅ।

तेॅ सीचोॅ आपनोॅ धरती,
वीर सीनी तोॅ आपनोॅ खून सेॅ।

ईस्वी सन् अठारह सौ बीस मेंॅ,
माय कोखी सिद्वो लेलेॅ छेलै अवतार।

सिद्धो-कान्हू भायरों, चांद,
चुनू मुर्मू के बेटा चार।

सिद्धो-कान्हू ई धरती के वीर पुरूष महान,
इतिहासों मेॅ लिखैलकै जौनेॅ आपनोॅ नाम।

सिद्धो-कान्हू केरोॅ गाथा।
आगू करौं विस्तार।

जेकरोॅ कथा-कहानी जानेॅ,
सौंसेॅ जग-संसार।

आपनोॅ जिनगी भर जेॅ सिद्धो-कान्हू
अंग्रेजांे केॅ दहलावै।

जन्मभूमि सिद्धो-कान्हू के,
भोगनाडीह-कहलावै।

संताल जनजाति लड़ाकू,
नाम उजागर होलोॅ छै।

चुनुमुर्मू के बेटा सिद्धो-कान्हू,
इतिहास के पुरूष कहलावै छै।

प्रखण्ड बरहेट निकट गुमानी,
नद्दी छै आमियोॅ एक नामी।

प्रेम सद्वोखिनी ऊ धरती सेॅ,
सिद्धो-कान्हू चांद-भायरो केॅ छेलै।

धन्य धरती वोहीं जग्धा पर,
बचपन मेॅ उछलै कूदै-खेलै।

वहीं धरती पर घोलटी-पलटी,
बचपन सदा बितैनेॅ छै।

गुमानी के गोदी मेॅ बैठी,
कखनू पालथी मारी केॅ।

साथी-संगी साथेॅ खेलै,
छप-छप पानी टारी केॅ।

सिद्धो-कान्हू गुमानी मेॅ,
पहिनें खूब नहैलोॅ छै।

ई क्षेत्रों मेॅ सिंहभूम, मानभूम सेॅ,
आरू गिरिडीह वीरभूम सेॅ भाय।

मिदनापुर बॉकुड़ा सगरोॅ सेॅ,
संताल थोड़ोॅ-थोड़ोॅ आय।

आमड़ापाड़ा, लिट्टीपाड़ा,
बोरियों, बॉझी मेॅ तत्काल।

लोभोॅ मेॅ आबी केॅ
बसलै कुछ संताल।

अंग्रेज चाहेॅ लागलै संतालोॅ केॅ
हृदय लियै केना बसाय।

सीमांकित क्षेत्रों मेॅ बसै रहै,
पहाड़िया... समुदाय।

ऊ क्षेत्रों के नाम अंग्रेज धरलकै,
जबेॅ दामिन-ई-कोह।

पहाड़िया के आगू लागै,
विचित्रेॅ ऊहां-पोह।

जे दामिन-ई-कोह कहाबै,
ओकरोॅ ऊपर-काल।

बनैलकै ओकरा संताल परगना,
अंग्रेज चललै अहिनोॅ चाल।

फूट डालबोॅ सत्ता लेली,
ई छेलै आवश्यक... मंत्र।

फूटोॅ के चलतेॅ ही आबै छै,
दुनिया मेॅ परतंत्र।

पहाड़िया, संतालोॅ केॅ फोड़ी देलकै,
चललै अंग्रेज अहिनोॅ चाल।

चुड़ा मांझी केॅ अंग्रेजें नेॅ
मानै आपनोॅ ढाल।

चुड़ा मांझी अंग्रेजों के,
छेलै एक हिमायती दलाल।

चुड़ा मांझी सेॅ करवाबै,
एगोॅ भारी शर्त!

सिद्धो-कान्हू गुट केॅ,
भेजै केरोॅ गर्त्त।

सिद्धो-कान्हू केॅ पकड़बाबै लेली,
अंग्रेज करै घोषना इनाम।

सिद्धो-कान्हू केॅ अंगधरा पर,
नै रहै तनियोॅ-डोॅर।

मन मेॅ रहै सदा स्वर्ग मेॅ,
बनाबौं एगोॅ मनोहर घोॅर।

हुन्नेॅ फूलों-झानों घूमै,
संतालो के... गॉव।

रौंदी जखनी बदन जराबै,
बैठैं गाछी छॉव।

जन्नेॅ पाबै घोलटै छेलै,
शैय्या मखमली घास।

खूब घूमै गामेॅ-गामेॅ,
वहीं बिताबै रात।

संतालोॅ पर असर करलकै,
फूलों-झानों केरोॅ बात।

संतालोॅ के साथ करी केॅ,
ताकत खूब बनावै छै।

देश भक्ति के भाव युवक-युवती केॅ,
आपनोॅ भाषण सेॅ समझाबै छै।

पूरा जंगली तरी इलाका मेॅ,
अंग्रेजोॅं केरो राज।

करै छेलै बड़ी धैर्य से,
आपनोॅ सब्भेॅ काज।

स्वतंत्रता संग्राम यहाँ से,
पहिलेॅ होलो छै जारी
यै धरती के वीर सदा सेॅ,
दुश्मन पर पड़रलै भारी।