भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सम्मत / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:47, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह=हम्मर लेह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अई होली में
हम सब्भे गोरा मिल क
एगो नया सम्मत जराएब
जइमें
न होएत घास-फूस
न जरना के गठरी
न होएत-
ढोल-झाल के लाम-काम
हं! आऊ हम सब्भे गोरा मिल क
एगो नया सम्मत जराएब
जइमे जराएब हम
धनीक-गरीब के खाई
जात-धरम के नाम पर
रोज-रोज के खून-खराबा
चोरी-डाका/बलत्कार
सब्भे के एके साथ
जरा देब होलिका-दहन के नाम पर
एक्के साथ!
आऊर दूर से हम सब्भे गोरा
बइठ क देखब
ऊ निकलल सुन्नर तेज परकास के
जेकरा में हम सब नहा जाएब
रंग जाएब प्रेम के रंग में
जे होएत सच्चो के होली
ई समाज के खातिर
हमरा सब के खातिर।