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सजनि, ऋतु मादिनी / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

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भैरवी त्रिताल

गगन में अरुण पराग भरे,
छवि के दल छवि के सरसिज से खिल-खुल कर बिखरे;

जवार जागर के अन्तर्मन-सर में उमड़ पड़े
रंगों के संगीत नींद की पलकों पर उतरे;
गगन में अरुण पराग भरे।

कुम्हलाए निशि की वेणी में तारों के गजरे,
पाते सुमन पवन के चुम्बन, सजन सेज तज रे;
गगन में अरुण पराग भरे।

(20 फरवरी, 1974)