Last modified on 18 मई 2018, at 15:58

ऐनाहिते बिसनाईत / हम्मर लेहू तोहर देह / भावना

Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:58, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=भावना |अनुवादक= |संग्रह=हम्मर लेह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

ऐनाहिते बिसनाईत कहिया तक जिनगी बितएबऽ।
धरती पर अएबऽ एकदिन त तू बड़ा पछतएबऽ॥

सोचइत हतऽ उमीर एनाहिते कटईत जाएत।
दोसर के आस ध के केतना कदम चल पएबऽ॥

कोनो तोरा कोन जतन से केना के समझाएत।
खएवऽ ठोकर जव्भे त अपने-आप संभल अएबऽ॥

खुद के बिसार के कोई कहिया तक जी पाएल।
झांक ल बस दिल के भीतर अपने सब समझ जएबऽ॥

धुने में खोजइत हतऽ केने हए अप्पन मकान।
तनी छंटे द तू ई धुन के त सबकुछ निखरल पएबऽ॥