भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

हृदय राग का सागर / रामइकबाल सिंह 'राकेश'

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 18:18, 18 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रामइकबाल सिंह 'राकेश' |अनुवादक= |सं...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हृदयराग का सागर
उमड़ पड़ा मकरन्द-गन्ध से मादन।

चित्रकानना प्रकृति सहज उत्फुल्लित,
बरसाती वारुणी प्राण से प्लावित,
उड़ा गन्धवह रहा कुसुम का केसर।

छन्द मालिनी में मुखरित नव यौवन,
देकर तरु-निकुंज को ग्रीवालिंगन,
अँगड़ाई लेता धरती पर अम्बर।

सहस्रांशु के कनकबिम्ब से चित्रित,
अन्तरिक्ष के नाभिवलय में दीपित,
लहराता सौन्दर्य ज्योति का भास्वरं