कजली / 12 / प्रेमघन
॥उर्दू भाषा॥
आई क्याही भाई-भाई दिल को यह प्यारी बरसात॥
घिरकर अब्रि-सियः ने बनाया इकसाँ दिन औ रात।
अजब नाज़ अन्दाज़ दिखाती बिजली की हरकात॥
छाई सब्ज़ी ज़मीं प' गोया बिछी हरी बानात।
खिले गुले गुलशन, क्या लाई कुदरत है सौगात॥
शुरू रक़्से ताऊस हुआ सहरा में, शोरि नग़मात।
गातीं झूला झूल-झूल कर नाज़नीन औरात॥
चलो सैर को साथ जानि-जाँ मानो मेरी बात।
बरस रहा है 'अब्र' प्रेमघन गोया आबि-हयात॥25॥
॥दूसरी॥
गै़रौं से मिल-मिल कर मेरा क्यों दिल जिगर जलाते हो॥
क़सम खुदा की साफ़ बता दो क्यों शरमाते हो।
यार प्रेमघन "अब्र" मज़ा क्या इसमें पाते हो॥26॥
॥तीसरी॥
वारी-वारी जाऊँ तुझ पर दिलबर जानी सौ-सौ बार।
दिखा चाँद-सा चिहरा मत कर तीरे निगह के वार॥
इक बोसे के लिये सताते हो करते तकरार।
खूब प्रेमघन "अब्र" मिले तुम हमें अनोखे यार॥27॥