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कजली / 29 / प्रेमघन
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झूलन
प्यारी की झूलनि में प्यारी, उझुकि झुकि झूलै हो झूलनियाँ
गोरे बदन सीप-सुत सहित, लखे हिय हूलै हो झूलनियाँ
खेलत सुक जनु ससि की गोद हरखि, छबि तूलै हो झूलनियाँ
बिकसे बारिज पैं कै कलित, कुन्द फबि फूलै हो झूलनियाँ
झूमि झूमि कै चूमत अधर, माधुरी मूलै हो झूलनियाँ॥
बरसत मनहुँ प्रेमघन सुधा बुन्द नहिं भूले हो झूलनियाँ॥50॥