भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कजली / 45 / प्रेमघन

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:16, 21 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जन्माष्टमी की बधाई

मिट्यो सकल दुख द्वन्द, बढ्यो आनन्द, नन्द घर आए रामा।
हरि हरि अज आनन्द कन्द बृजचन्द मुरारी रे हरी॥
भार उतारन काज भूमि, लखि भरी पाप तैं भारी रामा।
हरि हरि लीला ललित करन रुचि रुचिर बिचारी रे हरी॥
असुर सकल अकुलाने, सुरगन बरसत सुमन सुखारी रामा।
हरि हरि कहत "जयति जय-जय जग मंगलकारी" रे हरी॥
गाय प्रेमघन गुन बिरंचि, शिव नाचत दै करतारी रामा।
हरि हरि मुदित मनहुँ तम मन की सुरत बिसारी रे हरी॥81॥