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कजली / 48 / प्रेमघन

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तीसरा प्रकार
साँवर गोरिया
सामान्य लय
"नाहौं तोरे जोबना पर बहार साँवर गोरिया"-की चाल
ब्रजभाषा

दोऊ मिलि करत बिहार साँवर गोरिया॥
आजु कलिन्दी कूलन कुसुमित कदम निकुंज मझार साँवर गोरिया॥
दोउदुहूँ पर मन करत निछावर दोउ दुहुँ ओर निहार साँवर गोरिया॥
दोउ दुहुँ के गरबाहीं दीने रूसत करि तकरार साँवर गोरिया॥
बरसत दोउ रस उमड़ि प्रेमघन मुख चूमत करि प्यार साँवर गोरिया॥

॥दूसरी॥

कैसी करूँ कहाँ जाँव अब दैय्या रे॥
बरसाने के धोखे देखो आय गई नन्दगाँव अब दैय्या रे॥
जिय डरपत हिय थर-थर काँपत लाग्यो बाको दाँव अब दैय्या रे॥
मिलै न कहुँ मग बीच प्रेमघन मोहन जाको नाव अब दैय्या रे॥

गृहस्थिनों की लय
स्थानिक ठेठ स्त्री भाषा

तोहिं पर सँवरा लुभान साँवरि गोरिया॥
सँवरी सूरत, रस भरी अँखियाँ, लखि बिन मोलवैं बिचान साँवरि गोरिया॥
तोरे देखन काज आज कल, घूमै सँझवो बिहान साँवरि गोरिया॥
एकहु पल नहिं कल अब ओके जब से नैन उरझान साँवरि गोरिया॥
मिलि रस बरसु प्रेमघन पिय पर दैकै जोबनवाँ कै दान साँवरि गोरिया॥

॥दूसरी॥

जिनि करः जाए कै बिचार बनिजरऊ!
रिमझिमि रिमझिमि दैव बरौसै, बढ़ि आए नदिया औ नार बनिजरऊ॥
और महीना बनह बैपारी, सावन गटई कैहार बनिजरऊ॥
काउ नफा फेरि आइ भँजैव्यः, बढ़ि गए जोबना के बजार? बनिजरऊ॥
बरसः रस मिलि पिया प्रेमघन मानः कहनवाँ हमार बनिजरऊ॥

॥तीसरी॥

भैय्या न आयल तोहार छोटी ननदी॥
बरसत सावन तरसत बीता, कजरीकै आइलि बहार छोटी ननदी॥
सब सखी झूला झूलैं गावैं, सावन, कजरी, मलार छोटी ननदी॥
पी पी रटत पपीहा, नाँचत मोर किए किलकार छोटी ननदी॥
प्रिया प्रेमघन बिन एकौ छन, नाहीं लागै जियरा हमार छोटी ननदी॥