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कजली / 60 / प्रेमघन
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उर्दू भाषा
बने ठने यों कहाँ से आते हो मेरे दिलदार यार॥
रुखे़ मुनव्वर पर निखरे हैं गेसूये ख़मदार यार।
गंजि हुस्न पर याकि निगहवाँ हैं यह काले मार यार॥
चश्मि मस्त में बादै गुलगूँ का है भरा खुमार यार।
तेगे़ निगहे नाज़ से करते फिरते हैं यह वार यार॥
दस्तो पाय हिनाई पोशिश रंगे गुले आनार यार।
लबे लाल भी रँगे पान से दिखलाते हैं बहार यार॥
अब मत मेरा दिल तरसाओ सुनो मेरे अैय्यार यार।
अब्र करम बरसो मुझ पर दे दो बोसे दो चार यार॥106॥