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कजली / 71 / प्रेमघन

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मानः कि न मानः हम तौ जावै नैहरवाँ,
कजरी क दिन नगिचान
जिया ललचान बां न।
छोड़ि ससुरारि आइलि बाटीं सब सखियाँ,
छोटका बहनोयौ मेहमान बा;
मिलल मिलान बा न।
भेजली संदेसा मोरी बड़ी भउजैया
आवः भल सावन सुहान बा;
जुटल समान बा न।
झूला मिल झूली गाई कजरी रसीली,
खेल ढुनमुनियाँ मिठान बा;
मन हुलसान बा न।
खुसी में बितावः सावन जबलै जवानी,
प्रेमघन प्रेम उमड़ान बा;
लहर प्रेम उमड़ान बा,
लहर लखान बा न॥120॥

॥दूसरी॥
बृजभाषा

चातक रटान की, मयूरनि नटान की,
छाईछबि घिरन घटान की;
लहर अटान की न।
पान मदिरान की, रसीले पान खान की,
छेड़नि मलारन के तान की;
कजरी के गान की न।
सजी सेजियान की, सुतनि सतराग की,
पिय हिय लगि मुसकान की;
चुम्बन के दान की न।
छुटि छतरान की, अलक उलझान की,
झूलनि में लर मुकतान की,
सूहे दुपटान की न।
है न ऋतु मान की, अरी पिय मिलान की,
प्रेमघन प्रेम उमड़ान की,
मुख के निधान की न॥121॥

॥तीसरी॥

आरे अब निठुर दुहाई तोहि राम की,
कैसी बरखा है धूम धाम की,
प्रेमिन के काम की न।
तरसत बरसन सों मैं बैठी,
पिया बनि चेरी तेरे नाम की;
बिकी बिना दाम की न।
बरसु बेगि रस प्रेम प्रेमघन,
बिछी सेज सजे सूने धाम की;
निसि जुग जाम की न॥122॥