भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कुत्ता / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:25, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बालकृष्ण गर्ग |अनुवादक= |संग्रह=आ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अगर तुम्हारा है बुत्ता,
पालो प्यारा-सा कुत्ता।
कम खाता है, कम सोता,
भारी वफादार होता।
उसकी भौं-भौं-भौं सुनकर
अच्छे-अच्छे जाते डर।
देख रात-दिन निगरानी,
मरती चोरों की नानी।
[राष्ट्रीय सहारा (लखनऊ), 26 सितंबर 1996]