भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हुआ प्रभात / बालकृष्ण गर्ग
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:22, 22 मई 2018 का अवतरण
मुर्गा बोला-’जल्दी उठकर
अगर न दूँ मैं बाँग,
हो न सवेरा, सूरज दादा
कभी न पाएँ जाग’।
सूरज दादा मुस्काएँ, सुन-
‘कुकड़ूँ-कूँ’ की बात;
छिटकी वह मुस्कान धरा पर,
स्वर्णिम हुआ प्रभात’।
[नंदन, जून 1997]