भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ताईजी, ओ ताईजी / उषा यादव
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 16:28, 22 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=उषा यादव |अनुवादक= |संग्रह=51 इक्का...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
छोटी-सी यह बात आपने,
बोलो, क्यों बिसराई जी?
ताईजी, ओ ताईजी।
ज्यों ही बिस्तर छोड़ा प्रात,
करी सफाई की शुरुआत।
इसको झगड़ा, उसको पौंछा,
सचमुच कितनी अच्छी बात।
घर के हर कोने-अतरे में
झाड़ू तुरत लगाई जी।
ताईजी, ओ ताईजी।
घर का कचरा सभी बटोर,
झटपट ताक-झाँक चहुँ ओर,
नीचे दिया गली में फेंक,
जाकर के छज्जे की ओर।
मन ही मन खुश होकर सोचा,
सबकी नजर बचाई जी।
ताईजी, ओ ताईजी।
ऐसा ही यदि सब सोचेंगे,
छज्जे से कूड़ा फेकेंगे।
गली आपकी गंदी होगी,
मक्खी औ मच्छर पनपेंगे।
फैली बीमारी तो समझो
शामत सबकी आई जी।
ताईजी, ओ ताईजी।