भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आशीर्वाद / प्रेमघन
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:07, 23 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=बदरीनारायण चौधरी 'प्रेमघन' |अनुवा...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
निज प्रणीत 'भारत सौभाग्य' नाटक से
मंगल करै ईस भारत को सकल अमंगल बेगि बहाय॥
आलस निद्रा सों उठि जागैं भारतबासी धाय।
एका, सुमति, कला, विद्या, बल, तेज स्वत्व निज पाय॥
उद्यम पगे, धरमरत, उन्नति देस करैं चित चाय।
दुःख कलंक धोय देवैं फिरि वे ही दिन दिखलाय॥
बरसहिं जलद समय पर जल भल सस्य समृद्धि बढ़ाय।
सुखी धेनु पय श्रवहिं, सकै नहि कोऊ तिनहिं सताय॥
राजा नीति सहित राजैं नित प्रजा हरख अधिकाय।
प्रेम परस्पर बढ़ै प्रेमघन हम यह रहे मनाय॥150॥