भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मलहा-खोजना / बिहुला कथा / अंगिका लोकगाथा

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:05, 24 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=चन्द्रप्रकाश जगप्रिय |अनुवादक= |स...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

होरे खोजें तो लागल रे चांदो छबाकोरो मलाहारे।
होरे पचीस-पचीस बरस केर मलहा आने ले रे॥
होरे सवेजे बिआहल रे दैबा कोई नहीं कुँवारे रे।
होरे छवों ओरी मलाहा रे दैबा कैलकै तैयार रे॥
होरे धन तो सरबर रे बनियाँ चढ़ा बेरु लेले रे।
होरे सातम आपने रे चान्दो खेले पांसा सारी रे॥