भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

कविता गुण है तनहाई का / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 09:56, 25 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलकांत सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कविता गुण है तनहाई का।
जीवन धन है तनहाई का।
अस्तित्व पूछते हो अपना?
निरा छलावा तनहाई का।

बन्दगी में प्रात मिले या कि सायं हो।
जिन्दगी में धूप मिले या कि छांह हो।
शूल से भरा हो पथ या तम से घिरा
किन्तु मेरा नाम लिखा एक गांव हो॥


कोई ग़म नहीं, न जाने मेरी कैफियत कोई.
ग़म भी ग़म नहीं, न पूछे मेरी खैरियत कोई.
हाँ, मेरी रोशनी से रोशन कल ये होगी जमीं
आज न माने, न माने मेरी हैसियत कोई॥

चढ़ता हुआ सूरज हूँ मैं।
बहता हुआ पानी हूँ मैं।
लोग 'कमल' कहते हैं मुझे
पत्थर की कहानी हूँ मैं॥