भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

आपको जो चाहिए ले लीजिए / कमलकांत सक्सेना

Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 14:11, 25 मई 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलकांत सक्सेना |अनुवादक= |संग्रह...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आपको जो चाहिए ले लीजिए
ले रहे अधिकार शब्दों पर कमल।

जो पवन के आसरे थे उड़ गये
हम रहे आधार अपनों पर कमल।

आपका इतिहास ढालों ने लिखा
और है तलवार युद्धों पर कमल।

आपकी सूरत सलोनी है मगर
दहकते अंधियार शीशों पर कमल।

कुर्सियाँ तक बन गई हैं देवता
रह गई सरकार खरचों पर कमल।

अब कला का मोल होता है कहाँ
जी रहे फनकार रोजों पर कमल।

जो नहीं केवल पुजारी ही रहा
पूज्य है वह प्यार अधरों पर कमल।

यह हमारी सभ्यता है देखिये
खुद बने उपहार लपटों पर कमल।