भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सड़क पर भटकते, घूमते / ज्योति खरे

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:15, 11 जून 2018 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=ज्योति खरे |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKav...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सड़क पर
भटकते, घूमते
अचानक प्यार में
गिरफ़्तार हो गया

लोग कहते हैं
वो आबाद हो गया
 
थोड़ी-सी
ज़मीन ही तो
मिली थी उसे

ग़रीब मर गया
ज़मीदार हो गया