भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जब जब आता सावन है / रंजना वर्मा
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 12:41, 16 जून 2018 का अवतरण
जब जब आता सावन है
हरषा तब नील गगन है।।
हरिया जाती सब डालें
खिल खिल उठता उपवन है।।
रह रह कर बूँदें बरसी
पर नभ में मेघ सघन है।।
चलती तेज हवाओं की
आतप से कुछ अनबन है।।
बादल नभ में छा जाते
सरसा धरती आँगन है।।
कम हो जाता आतप जब
हर्षित होता जन मन है।।
अंकुरित हो गयी वसुधा
कृषकों का हृदय मगन है।।